ख्वाब था की ये जहां हरपल यूँही मेरे क़ाबू में रहेगा
इंतेज़ार में हूँ वक़्त की जब दिल ही मुख़ालिफ़त मे कुछ तो कहेगा
अर्ज़ फ़रमाता रहा फिर भी मुस्तक़िल नाकाम
हाल-ए-दिल नाज़ुक फिर भी ख़ामोशियों में सहेगा
अर्ज़ फ़रमाता रहा फिर भी मुस्तक़िल नाकाम
हाल-ए-दिल नाज़ुक फिर भी ख़ामोशियों में सहेगा